द लोकतंत्र: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नज़दीक आते ही राजनीतिक बयानबाज़ी तेज़ हो गई है। निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने ANI पॉडकास्ट में कई बड़े नेताओं और मसलों पर खुलकर प्रतिक्रिया दी है। महाराष्ट्र में चल रहे हिंदी बनाम मराठी विवाद से लेकर तेजस्वी यादव, प्रशांत किशोर, असदुद्दीन ओवैसी और कन्हैया कुमार तक पप्पू यादव ने सब पर निशाना साधा।
राज ठाकरे को चुनौती, मराठी संस्थाओं पर चेतावनी
पप्पू यादव ने राज ठाकरे को खुलेआम चेतावनी देते हुए कहा कि अगर कोई हिंदी भाषी या बिहार-झारखंड के लोगों को चुनौती देगा, तो वे मुंबई जाकर खुलकर लड़ाई लड़ेंगे। उन्होंने यह तक कह दिया कि अगर जरूरत पड़ी तो बिहार में एक भी मराठी संस्था नहीं चलने देंगे। यह बयान महाराष्ट्र में हिंदी-भाषियों पर हो रहे हमलों और भाषाई विवाद के बीच आया।
गुजरात, मणिपुर, असम में बिहारी मजदूरों पर हमले
पप्पू यादव ने बताया कि उन्होंने गुजरात, मणिपुर और असम जैसे राज्यों में बिहारी मज़दूरों पर हुए हमलों के बाद खुद मोर्चा संभाला और लोगों को सुरक्षित घर लाए। उन्होंने कहा कि “हम पर बम फेंका गया, पत्थर मारा गया, धमकियाँ मिलीं लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी।”
प्रशांत किशोर और तेजस्वी यादव पर तीखा हमला
प्रशांत किशोर की पार्टी में शामिल होने की अटकलों पर पप्पू यादव ने कहा कि “मैंने तो पहले ही मना कर दिया था।” साथ ही उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर पहले कहते थे MLA नहीं बनेंगे, अब CM बनने की बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “उन्हें मुख्यमंत्री बनने का सपना छोड़ देना चाहिए।”
तेजस्वी यादव को “घमंडी युवराज” बताते हुए पप्पू यादव ने साफ कहा कि वह ऐसे किसी भी नेता के साथ मंच साझा नहीं करेंगे, जो केवल पारिवारिक विरासत के भरोसे राजनीति कर रहा हो।
ओवैसी और सीमांचल की राजनीति
असदुद्दीन ओवैसी को लेकर उन्होंने कहा कि चुनाव लड़ने का हक सभी को है, लेकिन ओवैसी का सीमांचल में अब कोई खास प्रभाव नहीं रहेगा। उन्होंने कहा, “कुछ असर हर किसी का होता है, लेकिन ओवैसी इस बार वोट नहीं काट पाएंगे।”
कन्हैया कुमार की तारीफ
जेएनयू से निकले कन्हैया कुमार को पप्पू यादव ने “प्रतिभाशाली और जीनियस” बताया। उन्होंने कहा कि अच्छे और होशियार नेताओं को चुनाव लड़ना चाहिए और उन्हें जीतना भी चाहिए।
बिहार में आगामी चुनाव को लेकर पप्पू यादव की रणनीति और तेवर दोनों बेहद स्पष्ट हैं। वह न केवल अपने विरोधियों पर हमलावर हैं, बल्कि वे खुद को एक “बिहारी हितैषी” और “जमीनी नेता” के रूप में पेश कर रहे हैं। अब देखना यह होगा कि क्या उनका यह रुख चुनाव में कोई बड़ा बदलाव ला पाएगा।