द लोकतंत्र : पीलीभीत से वरुण गांधी के टिकट कटने के बाद बदलते सियासी समीकरण को देखते हुए कांग्रेस में अंदरखाने वरुण गांधी को अमेठी से लड़ाए जाने की चर्चा तेज हो गई है। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता यह चाहते हैं कि ‘गांधी परिवार’ अब एक हो जाये। वरुण को कांग्रेस पार्टी में आने के लिए अधीर रंजन चौधरी पहले ही आमंत्रित कर चुके हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा था कि उनका टिकट कांग्रेस में नहीं कटेगा।
वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी ने भी बयान देते हुए कहा था कि भाजपा ने वरुण गांधी और मेनका गांधी को ‘गांधी परिवार’ के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया है। उन्होंने यह भी कहा था कि बहुत जल्द भाजपा मेनका गांधी को भी हाशिये पर लेते आयेगी क्योंकि भाजपा का मक़सद पूरा हो चुका है।
अमेठी से वरुण का है ख़ास कनेक्शन
अमेठी संसदीय सीट से वरुण गांधी का एक ख़ास कनेक्शन है। दरअसल, अमेठी लोकसभा सीट वरुण के पिता संजय गांधी की विरासत है। वरुण भले ही पीलीभीत का प्रतिनिधित्व करते रहे हों लेकिन उनका भावनात्मक जुड़ाव अमेठी से बहुत गहरा है। संजय गांधी के विमान हादसे में मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी द्वारा मेनका गांधी को उनकी राजनीतिक विरासत न सौंपना ही मेनका गांधी के मन में गांधी परिवार के प्रति खटास का प्रमुख कारण है। हालाँकि यह कहा जाता है कि समय हर घाव भर देता है ऐसे में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता यह चाहते हैं कि सारे गिले शिकवे भुलाकर अब ‘गांधी परिवार’ एक हो जाये।
और शायद यही वजह है कि भाजपा द्वारा वरुण का टिकट काटे जाने के बाद कांग्रेस इसमें अपना सियासी अवसर भी देख रही है। कांग्रेस पार्टी द्वारा वरुण गांधी को अपने ख़ेमे में लाने के भरसक प्रयास हो रहे हैं। अंदरखाने यह बात चल रही है कि कैसे भी वरुण गांधी को मनाकर अमेठी से प्रत्याशी घोषित कर दिया जाये। वहीं रायबरेली सीट से राहुल या प्रियंका गांधी वाडरा में से कोई एक सोनिया गांधी की राजनीतिक विरासत को आगे लेकर जायें।
वरुण अमेठी से लड़े तो मुश्किल होगी स्मृति की राह
वरुण गांधी काफ़ी समय से ख़ुद अपनी ही सरकार पर कई मुद्दों को लेकर हमलावर थे। वरुण गांधी द्वारा अपनी ही पार्टी लाइन से इतर जाकर बयान देना और पीएम मोदी और सीएम योगी को घेरना यह बताने को काफ़ी था कि उन्हें पार्टी से विशेष लगाव नहीं रह गया है और वे अब भाजपा के साथ बस बचा हुआ समय काट रहे हैं। बेटे की ही तरह माँ मेनका गांधी ने भी बेरोज़गारी के मुद्दे पर ख़ुद अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा किया था। उन्होंने अपनी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि लोगों की उम्मीदें घटी हैं कि उनको नौकरी मिलेगी भी या नहीं।
हालाँकि, भाजपा ने मेनका को सुल्तानपुर से पुनः प्रत्याशी बनाया लेकिन पीलीभीत से वरुण का पत्ता काट दिया। वैसे तो वरुण गांधी ने अभी तक अपने अगले कदम को लेकर कोई भी साफ़ संदेश नहीं दिया है लेकिन अंदर ही अंदर उनके मन में अंतर्द्वंद चल रहा है। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक़ कांग्रेस पार्टी वरुण को पार्टी में शामिल कराकर उन्हें अमेठी से सियासी मैदान में उतारने का प्रयास कर रही है। अमेठी से वरुण भावनात्मक तौर पर जुड़े हैं क्योंकि यह उनके पिता संजय गांधी की कर्मस्थली रही है।
कांग्रेस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक़ अगर वरुण गांधी अमेठी से लड़ना स्वीकार कर लेते हैं तो भाजपा उम्मीदवार स्मृति ईरानी किसी भी क़ीमत पर अपनी सीट नहीं बचा पायेंगी। क्योंकि वरुण गांधी एक ऐसे नेता हैं जिनकी लोकप्रियता स्मृति से भी ज़्यादा है और अमेठी के लोगों के मन में वरुण को लेकर एक भावनात्मक जुड़ाव भी है जिसकी वजह से उनकी जीत पक्की हो जाएगी। और, अमेठी फिर से कांग्रेस के खाते में आ जाएगी।
कहीं भाजपा रायबरेली से न लड़ा दे वरुण गांधी को
हालाँकि, वरुण गांधी को पीलीभीत से टिकट नहीं दिया गया है लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि भाजपा उन्हें आगे किसी सीट से टिकट नहीं दे सकती। रायबरेली सीट पर अभी तक भारतीय जनता पार्टी ने अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। ऐसे में बहुत हद तक संभव है कि भाजपा रायबरेली सीट से वरुण गांधी को प्रत्याशी घोषित कर दे। सोनिया गांधी के राज्यसभा जाने और रायबरेली सीट पर उम्मीदवार घोषित करने में कांग्रेस की उदासीनता को देखते हुए यह सीट हासिल करने के लिए भाजपा के पास वरुण गांधी से बेहतर कोई कैंडिडेट नहीं हो सकता।
यह भी पढ़ें : मुख़्तार अंसारी की मौत पर किसने क्या कहा, इस नेता ने लगाए सांस्थानिक हत्या के आरोप
रायबरेली-अमेठी के बग़ल की सीट सुल्तानपुर से भाजपा के सिम्बल पर माँ मेनका गांधी चुनाव लड़ रही हैं। ऐसे में रायबरेली सीट पर वरुण गांधी के आने से मुक़ाबला पूरी तरह भाजपा के पक्ष में आ जाएगा। वरुण को अगर रायबरेली से भाजपा का सिम्बल मिला तो ‘अबकी बार चार सौ पार’ वाले नारे को धरातल पर उतारने के लिए भाजपा का यह मास्टरस्ट्रोक हो सकता है।