द लोकतंत्र : समुद्र मंथन का उल्लेख कई धर्मग्रंथों और पुराणों में मिलता है। यह घटना सृष्टि के आरंभिक काल में हुई मानी जाती है, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत (अमरता का अमृत) प्राप्त करने के लिए क्षीर सागर का मंथन किया था। यह कथा केवल पौराणिक नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक रूप से धैर्य, सहयोग और संतुलन का संदेश भी देती है।
समुद्र मंथन क्यों हुआ?
कथाओं के अनुसार, एक बार दुर्वासा ऋषि ने इंद्र के अहंकार के कारण उन्हें श्राप दिया कि देवता लक्ष्मी से वंचित हो जाएंगे। इसके बाद स्वर्गलोक से ऐश्वर्य, धन और शक्ति समाप्त हो गई, और देवता निर्बल हो गए।
तब भगवान विष्णु ने देवताओं को सलाह दी कि वे असुरों के साथ मिलकर क्षीर सागर का मंथन करें, जिससे अमृत की प्राप्ति होगी और देवता पुनः शक्तिशाली बन सकेंगे।
समुद्र मंथन कैसे हुआ?
मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथनी बनाया गया और वासुकि नाग को रस्सी के रूप में प्रयोग किया गया।
देवता एक छोर से और असुर दूसरे छोर से रस्सी पकड़कर समुद्र मंथन करने लगे।
यह मंथन अत्यंत कठिन था, लेकिन इसी से सृष्टि के कई मूल्यवान रत्न और वस्तुएँ उत्पन्न हुईं।
समुद्र मंथन कहाँ हुआ?
पौराणिक मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन क्षीर सागर में हुआ था, जो “दूधिया सागर” कहलाता है।
भौगोलिक दृष्टि से माना जाता है कि यह घटना बिहार के बांका जिले के मंदार पर्वत (मंदराचल) पर घटी थी।
समुद्र मंथन कब और कितने दिन चला?
शास्त्रों में समुद्र मंथन का सटीक समय नहीं बताया गया, लेकिन कुछ मान्यताओं के अनुसार यह घटना सतयुग में हुई थी।
कहा जाता है कि देवताओं के बारह दिवसीय मंथन के बराबर हजारों मानव वर्ष लगे थे।
समुद्र मंथन से निकले 14 रत्न
समुद्र मंथन से चौदह बहुमूल्य रत्न निकले, जिनमें प्रमुख हैं:
हलाहल विष, ऐरावत हाथी, कामधेनु गाय, उच्चैःश्रवा घोड़ा, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, रंभा अप्सरा, देवी लक्ष्मी, वारुणी मदिरा, चंद्रमा, शारंग धनुष, पांचजन्य शंख, धन्वंतरि और अंत में अमृत कलश।
समुद्र मंथन का संदेश
समुद्र मंथन हमें सिखाता है कि जब विपरीत शक्तियाँ भी किसी उद्देश्य के लिए मिलकर कार्य करती हैं, तो परिणाम अमूल्य होता है। यह कथा संघर्ष, सहयोग और आत्मबल की प्रतीक है।

