द लोकतंत्र: जैन धर्म के अनुयायियों के लिए पर्युषण महापर्व वर्ष का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण अवसर माना जाता है। यह पर्व आत्मचिंतन, आत्मशुद्धि, अहिंसा और संयम के सिद्धांतों पर आधारित है। ‘पर्युषण’ का अर्थ है, अपने भीतर बसना, यानी अपने मन और आत्मा की ओर लौटना।
आमतौर पर श्वेतांबर संप्रदाय में यह पर्व 8 दिन तक मनाया जाता है, जबकि दिगंबर संप्रदाय में इसका आयोजन 10 दिनों तक चलता है। कई क्षेत्रों में लोग पूरे 10 दिन तक इस पर्व का पालन करते हैं।
तिथियां और महत्व
साल 2025 में श्वेतांबर संप्रदाय का पर्युषण पर्व 21 अगस्त (गुरुवार) से शुरू होकर 28 अगस्त को समाप्त होगा। वहीं, दिगंबर संप्रदाय 28 अगस्त से 6 सितंबर तक यह पर्व मनाएगा। इस दौरान श्रद्धालु उपवास, तप, दान और आत्मचिंतन में लीन रहते हैं।
दस दिनों का आध्यात्मिक संदेश
- पहला दिन – क्रोध को मन में जन्म न लेने देना और यदि आए तो धैर्य एवं शांति से नियंत्रित करना।
- दूसरा दिन – व्यवहार में मधुरता और पवित्रता लाना, द्वेष और घृणा से दूर रहना।
- तीसरा दिन – अपने वचनों को निभाने और लक्ष्यों को पूरा करने का संकल्प लेना।
- चौथा दिन – वाणी पर संयम रखते हुए कम बोलना और सार्थक बोलना।
- पांचवां दिन – लालच और स्वार्थ को त्यागकर निस्वार्थ भाव से जीवन जीना।
- छठा दिन – मन पर नियंत्रण रखते हुए संयम और धैर्य का पालन करना।
- सातवां दिन – नकारात्मक विचारों को दूर कर आत्म-संयम और तपस्या करना।
- अष्टमी दिन – जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, ज्ञान आदि का दान करना।
- नवां दिन – किसी भी वस्तु के प्रति स्वार्थ न रखते हुए सेवा भाव अपनाना।
- दसवां दिन – अच्छे गुणों को अपनाना और आत्मा को शुद्ध एवं पवित्र रखना।
आध्यात्मिक लाभ
जैन दर्शन के अनुसार, पर्युषण पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आत्म-सुधार की प्रक्रिया है। इन दिनों में व्यक्ति अपने मन, वचन और कर्म को शुद्ध करने का प्रयास करता है। दया, क्षमा और संयम को जीवन का हिस्सा बनाने का यह अवसर, अंततः आत्मकल्याण की ओर ले जाता है।