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जय बिहार की हुंकार से विकास का संकल्प, संजय कुमार सिंह की पहल बन रही है बनियापुर की पहचान

The resolve for development with the roar of Jai Bihar, Sanjay Kumar Singh's initiative is becoming the identity of Baniyapur

द लोकतंत्र/ सचिन पांडेय : जब राजनीति सिर्फ सत्ता के लिए न होकर समाज के पुनर्निर्माण का माध्यम बने, तो उसका चेहरा संजय कुमार सिंह जैसा ही होता है। बिहार के सारण जिले का बनियापुर विधानसभा क्षेत्र, जो कभी बदहाली, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी की त्रासदी झेलता रहा, आज नई उम्मीदों और नए सपनों की राह पर चल पड़ा है। इस परिवर्तन की शुरुआत हुई थी साल 2020 में, जब पहली बार संजय कुमार सिंह ने तरैया से विधानसभा चुनाव के मैदान में कदम रखा और नारा दिया – जय बिहार। तब यह सिर्फ एक नारा नहीं था, यह एक आंदोलन की शुरुआत थी, जिसने बिहार की अस्मिता को फिर से जगाने का काम किया।

पहली बार किसी ने औद्योगिक क्रांति की बात की

2020 में जब संजय कुमार सिंह राजनीति में सक्रिय हुए, तब अधिकांश दल जाति, मजहब और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में उलझे हुए थे। लेकिन संजय कुमार सिंह ने एक अलग राह चुनी- औद्योगिक क्रांति की बात, बिहार में स्टार्टअप कल्चर, स्थानीय उद्यमिता और पलायन को रोकने की ठोस योजना। उस समय भले ही उनके विचार कुछ लोगों को अव्यवहारिक लगे हों, लेकिन आज, 2025 के विधानसभा चुनाव में, हर राजनीतिक दल इन्हीं मुद्दों पर बात कर रहा है, जिन्हें संजय कुमार सिंह ने पाँच साल पहले उठाया था।

जय बिहार फाउंडेशन: सिर्फ एक संगठन नहीं, एक सामाजिक आंदोलन

संजय कुमार सिंह ने अपने इसी सोच को संस्थागत रूप देने के लिए ‘जय बिहार फाउंडेशन ट्रस्ट’ की स्थापना की। यह ट्रस्ट केवल सामाजिक सेवा का मंच नहीं, बल्कि विकास और जागरूकता की एक जीवंत प्रयोगशाला बन गया। इस संस्था ने न सिर्फ भ्रष्टाचार और अपराध के विरुद्ध मोर्चा खोला, बल्कि बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार और नौकरी के अवसर दिलाने में भी अग्रणी भूमिका निभाई।

संगठन के स्वयंसेवकों ने ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर युवाओं को स्किल ट्रेनिंग, सरकारी योजनाओं की जानकारी और निजी क्षेत्र में रोजगार के लिए मार्गदर्शन देना शुरू किया। इसके अलावा महिलाओं के हितों को लेकर भी सक्रिय रही।

बनियापुर की बदलती तस्वीर

बनियापुर, जो कभी राजनीतिक अस्थिरता और आपराधिक राजनीति का गढ़ समझा जाता था, आज सामाजिक चेतना और विकास का मॉडल बनता जा रहा है। एडवोकेट राधेश कुमार शर्मा के अनुसार, संजय कुमार सिंह ने जिस तरह से राजनीति को सेवा का माध्यम बनाया है, वो अनुकरणीय है। उन्होंने साबित कर दिया कि राजनीति में बदलाव सिर्फ सत्ता से नहीं, सोच से आता है। और उनकी सोच साफ़ है, बिहार को फिर से गरिमा दिलाना।

हर मोर्चे पर फ्रंट फुट पर

चाहे मुद्दा भ्रष्टाचार का हो, सरकारी कामकाज में पारदर्शिता का या स्थानीय गुंडागर्दी और अपराध का, संजय कुमार सिंह और जय बिहार फाउंडेशन ट्रस्ट हर बार फ्रंट फुट पर आकर लड़ाई लड़े हैं। सामाजिक न्याय, समान विकास और युवाओं के सम्मान के लिए उन्होंने कई बार धरना-प्रदर्शन, जन संवाद और मीडिया अभियानों के ज़रिए आवाज़ बुलंद की है। यही नहीं, क्षेत्र में औद्योगिक क्षेत्र के लिए सबसे पहले अवाज संजय कुमार सिंह ने ही लगायी थी।

बिहार की राजनीति में ‘जय बिहार’ की गूंज

शुरुआत में जब संजय कुमार सिंह ने ‘जय बिहार’ का नारा दिया था, तब शायद ही किसी ने अंदाजा लगाया होगा कि यह नारा एक दिन बिहार की राजनीति की धुरी बन जाएगा। आज हर दल, हर नेता इस नारे का प्रयोग कर रहा है, लेकिन इसके पीछे की दृष्टि, प्रतिबद्धता और जमीनी संघर्ष सिर्फ संजय कुमार सिंह के खाते में जाता है। उनकी यह पहचान अब सिर्फ बनियापुर तक सीमित नहीं है, बल्कि वह पूरे बिहार के युवा नेतृत्व का एक मजबूत विकल्प बनकर उभरे हैं। उनका सपना है बिहार को आत्मनिर्भर बनाना, हर गांव में उद्योग, हर घर में रोजगार और हर नागरिक को सम्मान देना।

2025: बिहार की दिशा तय करने का साल

जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, राजनीतिक दलों की चाल तेज हो गई है। लेकिन जनता की नज़रें टिकी हैं उन नेताओं पर जिन्होंने सिर्फ वादे नहीं किए, बल्कि पिछले पाँच सालों में उन्हें जी कर दिखाया। और संजय कुमार सिंह इस कसौटी पर पूरी तरह खरे उतरते हैं। जय बिहार फाउंडेशन के प्रयासों से अब तक हज़ारों युवाओं को नौकरी, स्किल ट्रेनिंग और उद्यमिता के अवसर मिल चुके हैं। उनके इस अभियान ने न केवल युवाओं को सम्मानजनक नौकरियों से जोड़ा, बल्कि गांवों में भी विकास और समृद्धि की नींव रख दी है।


डिस्क्लेमर : यह लेख सचिन पांडेय द्वारा लिखा गया है, जो संजय कुमार सिंह के सोशल मीडिया स्ट्रेटेजिस्ट के रूप में कार्यरत हैं। यह लेख एक विचारात्मक प्रस्तुति है, जिसका उद्देश्य संजय कुमार सिंह के कार्यों, दृष्टिकोण और विकास यात्रा को जनता के सामने प्रस्तुत करना है। इसमें व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और यह लेख किसी निष्पक्ष पत्रकारिता या संपादकीय रुख का प्रतिनिधित्व नहीं करता। पाठकों से अनुरोध है कि इस सामग्री को एक प्रेरणात्मक दृष्टिकोण से पढ़ें।

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लोकतंत्र की मूल भावना के अनुरूप यह ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां स्वतंत्र विचारों की प्रधानता होगी। द लोकतंत्र के लिए 'पत्रकारिता' शब्द का मतलब बिलकुल अलग है। हम इसे 'प्रोफेशन' के तौर पर नहीं देखते बल्कि हमारे लिए यह समाज के प्रति जिम्मेदारी और जवाबदेही से पूर्ण एक 'आंदोलन' है।

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