द लोकतंत्र/ नई दिल्ली : मौजूदा समय में भारत की राजनीति दो प्रमुख ध्रुवों में बंटी हुई है। एक ओर है धुर दक्षिणपंथ, जो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मूल्यों को बढ़ावा देता है। दूसरी ओर है कट्टर वामपंथ, जो वंचित जातियों और वर्गों के अधिकारों और शिकायतों पर आधारित राजनीति की वकालत करता है। इन दोनों के बीच किसी तीसरी विचारधारा की स्पष्ट जगह नज़र नहीं आती।
देश को चाहिए एक नई दृष्टि
इस संदर्भ में जाने-माने विद्वान और पूर्व केंद्रीय मंत्री-सांसद शशि थरूर ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा कि आज भारत को न तो केवल धुर दक्षिणपंथ की जरूरत है और न ही कट्टर वामपंथ की। देश को चाहिए एक नई दृष्टि, जिसे वे ‘रैडिकल सेंट्रिज्म’ यानी मध्यमार्गी लेकिन कट्टरपंथी विचारधारा कहते हैं। थरूर का मानना है कि यह विचारधारा दोनों ध्रुवों की ताकत को अपनाते हुए उनके चरम दृष्टिकोण को अस्वीकार करती है।
शशि थरूर के अनुसार, रैडिकल सेंट्रिज्म का मूल उद्देश्य बहुलवाद और पहचान को बनाए रखते हुए विकास, समानता और सभ्यता का संतुलन स्थापित करना है। यह विचारधारा न केवल सामाजिक समानता को महत्व देती है, बल्कि राष्ट्रीय एकता और लोकतांत्रिक संस्थानों को भी मजबूत बनाती है। यह किसी एक विचारधारा को चुनने के बजाय विभिन्न गुणों को एक सुसंगत और भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण में जोड़ती है।
रैडिकल सेंट्रिज्म मजबूत, जवाबदेह संस्थानों का निर्माण करेगा
थरूर बताते हैं कि नेहरू का दृष्टिकोण भारत को धर्मनिरपेक्ष और समावेशी लोकतंत्र के रूप में देखने का था, जबकि सरदार पटेल का राष्ट्रवाद व्यावहारिक और एकजुट करने वाला था। वर्तमान में देश को चाहिए ऐसा राष्ट्रवाद जो जनता को जोड़ने वाला हो, न कि अंधा करने वाला।
ध्रुवीकरण के इस युग में सहमति निर्माण को अक्सर कमजोरी माना जाता है, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने दिखाया कि सहमति ताकत का स्रोत हो सकती है। उनकी क्षमता, विविध आवाज़ों को पार्टी के भीतर और बाहर एक साथ लाने की, केवल राजनीतिक कौशल नहीं बल्कि लोकतांत्रिक बुद्धिमत्ता थी। थरूर के अनुसार, रैडिकल सेंट्रिज्म को इसी भावना को पुनर्जीवित करना होगा। यह हठधर्मिता के बजाय संवाद और बातचीत को प्राथमिकता देगा और मजबूत, जवाबदेह संस्थानों का निर्माण करेगा।
सामाजिक न्याय के मामले में भी रैडिकल सेंट्रिज्म अंबेडकर के दृष्टिकोण को महत्व देता है। यह सुनिश्चित करता है कि उत्पीड़ितों के अधिकार और कल्याण लोकतंत्र का मूल हिस्सा हों। इससे लोकतंत्र केवल सत्ता के लिए नहीं, बल्कि सभी नागरिकों के लाभ और समाज की समग्र भलाई के लिए काम करता है। शशि थरूर का निष्कर्ष स्पष्ट है कि भारत को अब केवल ध्रुवीकृत राजनीति की जरूरत नहीं है। देश को चाहिए रैडिकल सेंट्रिज्म, जो मध्य मार्ग अपनाते हुए लोकतंत्र, बहुलवाद, सामाजिक न्याय और राष्ट्र की एकता को सशक्त बनाए।

