द लोकतंत्र: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। जहां एक ओर एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा था। वहीं, अब नए राजनीतिक दल भी मैदान में उतरने लगे हैं। उत्तर प्रदेश के दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की पार्टी आजाद समाज पार्टी कांशीराम ने बिहार में बड़ी एंट्री की घोषणा की है।
बुधवार को पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जौहर आजाद ने बताया कि पार्टी बिहार की 100 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। इनमें से 60 सीटों पर पार्टी ने प्रभारी भी घोषित कर दिए हैं, जबकि बाकी 40 पर प्रक्रिया अंतिम चरण में है।
महागठबंधन को 46 सीटों पर सीधी चुनौती
पार्टी का दावा है कि जिन सीटों पर वह चुनाव लड़ेगी, उनमें से 46 सीटें ऐसी हैं जहां सीधा मुकाबला महागठबंधन से होगा। जौहर आजाद ने कहा कि महागठबंधन हर वर्ग को साथ नहीं ले जा पा रहा, जिससे जनता में असंतोष है। उन्होंने बताया कि इन सीटों पर बूथ स्तर पर संगठनात्मक तैयारी पूरी हो चुकी है।
राष्ट्रीय अधिवेशन 21 जुलाई को
आजाद समाज पार्टी ने घोषणा की है कि 21 जुलाई 2025 को पटना में पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किया जाएगा। इस अधिवेशन में पार्टी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद खुद मौजूद रहेंगे और बिहार चुनाव के लिए अंतिम रणनीति तय करेंगे।
लोजपा (रामविलास) का पलटवार
इस घोषणा पर लोजपा (रामविलास) ने पलटवार किया है। पार्टी प्रवक्ता शशि भूषण प्रसाद ने कहा कि लोकतंत्र में सभी को चुनाव लड़ने का अधिकार है, लेकिन इससे चिराग पासवान की पार्टी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने दावा किया कि दलित समाज चिराग पासवान के साथ मजबूती से खड़ा है।
विशेषज्ञों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चंद्रशेखर आजाद बिहार में रविदास समाज के वोट बैंक को साधने की कोशिश करेंगे। वरिष्ठ पत्रकार संतोष कुमार के अनुसार, अब तक यह वोट बैंक मायावती और भाकपा (माले) के साथ रहा है। अगर आजाद इसमें सेंध लगाने में सफल होते हैं, तो इसका सीधा नुकसान महागठबंधन को, खासतौर पर आरजेडी को होगा।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि एनडीए को सीधा नुकसान नहीं होगा, क्योंकि पासवान वोटर और रविदास वोटर के राजनीतिक झुकाव अलग हैं। चिराग पासवान की पकड़ अब भी मजबूत मानी जा रही है।
बिहार चुनाव 2025 में आजाद समाज पार्टी की एंट्री से सियासी समीकरण बदल सकते हैं। भले ही पार्टी बड़े स्तर पर सीटें न जीत पाए, लेकिन 500-1000 वोट का असर भी कई सीटों पर परिणाम बदल सकता है। ऐसे में महागठबंधन को अब नई रणनीति के तहत तैयारी करनी होगी।