द लोकतंत्र : आज देशभर में गोवर्धन पूजा का पावन पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। यह पर्व केवल दीपावली के बाद मनाई जाने वाली एक पारंपरिक रस्म या धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि गोवर्धन की पूजा और कथा केवल एक पौराणिक प्रसंग नहीं, बल्कि यह गहरा संदेश भी देती है कि ईश्वर और प्रकृति हमारी हर रूप में रक्षा करते हैं और हमें उनका सम्मान करना चाहिए।
बाल कृष्ण ने सिखाया प्रकृति का महत्व
गोवर्धन पूजा की कथा वृन्दावन के ग्रामीणों और स्वर्ग के राजा इंद्र के अहंकार से जुड़ी हुई है।
इंद्र का क्रोध: पौराणिक कथाओं के अनुसार, वृन्दावन के ग्रामीण पहले इंद्र देव को अनुष्ठानिक बलि दिया करते थे। जब उन्होंने यह बलि देना बंद कर दिया, तो स्वर्ग के राजा इंद्र इस बात से क्रोधित हो उठे।
भयानक तूफान: इंद्र ने अपने इस क्रोध को व्यक्त करने के लिए वृन्दावन पर घनी बारिश और भयानक तूफान चलाया। चारों ओर अंधेरा छा गया और ग्रामीण बहुत डर गए। उनके मवेशियों और उनके जीवन पर संकट आ गया।
दिव्य हस्तक्षेप: तभी चरवाहा बाल रूप में श्रीकृष्ण शांत और प्रसन्न मुस्कान के साथ खड़े थे। उनके भीतर न केवल बालपन की चंचलता थी, बल्कि एक दिव्य शक्ति भी थी, जो इस भयावहता को देख रही थी।
छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत
कहा जाता है कि तभी बाल कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया। वह पर्वत वृन्दावन के लोगों और मवेशियों के लिए एक विशाल छतरी बन गया।
सात दिन की रक्षा: सात दिन और सात रात तक मूसलाधार बारिश होती रही, पर पर्वत के नीचे आश्रय लिए हुए किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।
विश्वास की जीत: सभी वृन्दावन के लोग पर्वत के नीचे आ गए। उनका डर विश्वास में बदल गया। जब इंद्र का अहंकार टूट गया और वर्षा थम गई, तब सूर्य फिर से चमक उठे।
गोवर्धन पूजा का जन्म
मान्यता है कि इस घटना के बाद ग्रामीणों ने कृष्ण और गोवर्धन पर्वत—दोनों को प्रणाम किया। उसी समय से गोवर्धन पूजा का जन्म हुआ और तभी से यह परंपरा चली आ रही है, जो दीपावली के अगले दिन मनाई जाती है। यह पर्व प्रकृति की शक्ति और ईश्वर के संरक्षण की याद दिलाता है।
अहंकार पर विनम्रता की विजय का संदेश
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इंद्र का वज्र केवल आकाशीय नहीं था, वह अहंकार का प्रतीक था। गोवर्धन पर्वत को उठाकर बाल कृष्ण ने यह सिद्ध किया कि शक्ति पर हमेशा विनम्रता की विजय होती है।
यह दिन हमें खुद के भीतर झाँकने का संदेश देता है। जब जीवन में अहंकार और भय के तूफ़ान उठते हैं, तब हमें उस से डरना नहीं चाहिए, बल्कि धैर्य बनाना चाहिए और ईश्वर में विश्वास बनाए रखना चाहिए। यह पर्व सिखाता है कि प्राकृतिक शक्तियों का सम्मान करना और विनम्रता ही हमें हर संकट से बचा सकती है।

