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बेंगलुरु ट्रैफिक संकट पर अजीम प्रेमजी की नसीहत, तात्कालिक उपाय नहीं दीर्घकालिक समाधान जरूरी

Azim Premji's advice on Bengaluru's traffic crisis: Long-term solutions are needed, not immediate measures

द लोकतंत्र/ नई दिल्ली : बेंगलुरु का ट्रैफिक संकट लंबे समय से न केवल शहरवासियों बल्कि उद्योग जगत और सरकार के लिए भी चिंता का विषय बना हुआ है। हाल ही में इस मुद्दे पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और विप्रो के संस्थापक अध्यक्ष अजीम प्रेमजी के बीच पत्राचार ने नई बहस को जन्म दिया है। 19 सितंबर को मुख्यमंत्री ने प्रेमजी को पत्र लिखकर आउटर रिंग रोड (ORR) के ट्रैफिक दबाव को कम करने के लिए सुझाव दिया था कि विप्रो का सरजापुर कैंपस आम वाहनों के लिए खोला जाए।

इस पर जवाब देते हुए 24 सितंबर को अजीम प्रेमजी ने साफ कहा कि बेंगलुरु के ट्रैफिक संकट का हल तात्कालिक उपायों से नहीं बल्कि वैज्ञानिक और डेटा-आधारित अध्ययन पर आधारित दीर्घकालिक रणनीति से संभव है।

अज़ीम प्रेमजी ने क्या लिखा?

अजीम प्रेमजी ने अपने पत्र में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व की सराहना करते हुए ट्रैफिक समस्या की गंभीरता को स्वीकार किया। उन्होंने लिखा कि आउटर रिंग रोड, जो बेंगलुरु का सबसे अहम एक्सपोर्ट कॉरिडोर है, उस पर किसी भी तरह के तात्कालिक या अस्थायी उपाय लंबे समय तक टिकाऊ नहीं रहेंगे। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस समस्या का समाधान शहरी यातायात विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों द्वारा संचालित एक व्यापक अध्ययन के आधार पर ही किया जाना चाहिए।

प्रेमजी ने यह भी स्पष्ट किया कि बेंगलुरु जैसे वैश्विक टेक-हब शहर की आर्थिक और सामाजिक वृद्धि अब उसके यातायात प्रबंधन और बुनियादी ढांचे पर ही निर्भर करती है। अगर ट्रैफिक समस्या का सही समाधान नहीं निकाला गया तो इससे न केवल उद्योगों को नुकसान होगा, बल्कि शहर की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी असर पड़ेगा।

विप्रो कैंपस खोलने की मांग पर क्या बोले प्रेमजी?

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपने पत्र में लिखा था कि ट्रैफिक विशेषज्ञों के अनुसार यदि विप्रो सरजापुर कैंपस को आम वाहनों के लिए खोल दिया जाए, तो आउटर रिंग रोड और उससे जुड़ी सड़कों पर ट्रैफिक का दबाव करीब 30% तक कम हो सकता है। पीक ऑवर में इससे यात्रियों को बड़ी राहत मिलेगी।

हालांकि, प्रेमजी ने इस मांग को स्वीकार करने से इनकार किया। उन्होंने कहा कि विप्रो का सरजापुर कैंपस स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (SEZ) में आता है, जहां अंतरराष्ट्रीय सेवा प्रतिबद्धताओं के चलते सख्त सुरक्षा नियम और एक्सेस कंट्रोल लागू हैं। ऐसे में वहां आम वाहनों को प्रवेश देने से कानूनी और अनुबंध संबंधी जटिलताएं पैदा होंगी।

सरकार से सहयोग का भरोसा

हालांकि प्रेमजी ने इस विशेष मांग को ठुकराया, लेकिन उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि विप्रो राज्य सरकार के साथ ट्रैफिक और मोबिलिटी संबंधी चुनौतियों के समाधान में सहयोग करेगा। उन्होंने अपनी कंपनी की वरिष्ठ प्रतिनिधि रेश्मी शंकर को राज्य अधिकारियों के साथ संवाद के लिए नामित किया है।

प्रेमजी का कहना था कि निजी क्षेत्र को भी इस संकट का हिस्सा मानते हुए सरकार के साथ मिलकर दीर्घकालिक नीति बनाने में योगदान देना चाहिए। यह पत्र इस बात को भी दर्शाता है कि बेंगलुरु जैसे तेजी से बढ़ते शहरों में प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी शहरी नीतियों को आकार देने में कितनी अहम होती जा रही है।

बेंगलुरु ट्रैफिक: समस्या कितनी गंभीर?

भारत का सिलिकॉन वैली कहे जाने वाला बेंगलुरु आईटी उद्योग का सबसे बड़ा केंद्र है। लेकिन ट्रैफिक जाम इस शहर की सबसे बड़ी समस्या बन चुका है। आउटर रिंग रोड (ORR), जो आईटी कंपनियों और एक्सपोर्ट हब के लिए एक अहम कॉरिडोर है, अक्सर घंटों जाम में फंसा रहता है। लाखों कर्मचारी रोजाना इस मार्ग पर सफर करते हैं। ट्रैफिक जाम के कारण न केवल समय और ईंधन की बर्बादी होती है बल्कि उत्पादकता में भी भारी गिरावट आती है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर समय रहते स्थायी समाधान नहीं निकाला गया तो बेंगलुरु की विकास गति पर सीधा असर पड़ेगा।

Team The Loktantra

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