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फ़ूड सेफ़्टी, हाइजीन जैसी बातें भारतीय रेलवे में बेमानी, मेरी ट्रेन यात्रा और ‘बेकार खाने’ को लेकर मेरी कहानी

Things like food safety, hygiene are redundant in Indian Railways, aggregator platforms are charging 'three time extra price' for poor quality food.

द लोकतंत्र : भारतीय रेलवे में फ़ूड सेफ़्टी और हाइजीन का आपस में कोई लेना देना नहीं हैं। अगर आप लंबे सफर में हैं और घर का खाना साथ नहीं लाये हैं तो रेलवे का खाना बिलकुल खाने की सोचियेगा नहीं। यह मैं अपने निजी अनुभवों से बता रहा हूँ। ट्रेन के अंदर मिलने वाले खाने में कॉक्रोच मिलना या उसका घटिया होना आम बात तो थी ही अब एग्रीगेटर फ़ूड प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से ऑर्डर हुए खाने भी बेकार क्वालिटी के मिल रहे हैं।

भारतीय रेलवे में मेरी यात्रा और ऑनलाइन फ़ूड ऑर्डर का स्यापा

दरअसल, कल रात ट्रेन संख्या 15113 ( गोमती नगर से छपरा कचहरी) से मैं ( सुदीप्त मणि त्रिपाठी ) पीएनआर संख्या 2537808299 एसी थ्री टीयर से मशरख (बिहार) की यात्रा पर था। मैंने आईआरसीटीसी की ऐप से फ़ूड ऑर्डर किया जो मुझे बाराबंकी में मेरी सीट पर मिलना था। ऑर्डर थे – मेरे पसंदीदा आलू के पराठे, दही और छाछ। ट्रेन क़रीब 10 बजे रात को बाराबंकी पहुँची और मुझे मेरा ऑर्डर डिलीवर कर दिया गया। अमूमन 50 से 80 रुपयों में दो आलू के पराठे मिल जाते हैं। 10 दही और 20 की छाछ भी मिल जाती है। लेकिन ट्रेन में मुझे यह तीनों चीजें 142 रुपये की पड़ी और चेंज न होने की वजह से मैंने 150 पे किया।

घटिया क्वालिटी के खाने का ‘थ्री टाइम एक्स्ट्रा प्राइस’ वसूल रहे एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म्स

खाना अच्छा मिले तो प्राइस को एकबारगी भुला जा सकता है। लेकिन अगर खाना बेस्वाद, बेकार और खाने योग्य न हो और उसके थ्री टाइम्स एक्स्ट्रा पैसे वसूले जायें तो यक़ीनी तौर पर आप ठगे से महसूस करते हैं। आपको यक़ीन नहीं होगा कि मैंने एक बाईट खाने के बाद ट्रेन में डिलीवर खाने को डस्टबीन के हवाले कर दिया। खाना ऐसा कि जानवर को खिलाने पर भी पाप लगता। जो आप एक निवाला न खा पाएँ बेचारे जानवर भी क्या ही खाएँगे।

हालाँकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। एक बार तो मैंने ऑनलाइन पेमेंट किया और खाना डिलीवर नहीं हुआ। ट्रेन भी वही और सफर भी वहीं तक और हालात भी वैसे ही। हालाँकि ट्वीट करने और कंप्लेन करने के बाद कूपन के रूप में मुझे पैसे वापस मिले लेकिन दो महीने की वैलिडिटी पर यानी मुझे दो महीने के भीतर दुबारा यात्रा करने पर ऑनलाइन ऑर्डर कर कूपन रीडीम करना था। दो महीने न यात्रा हुई और ना कूपन रीडीम किया। पैसे डूब गये। मेरे और मेरे जैसे न जाने कितनों के हर रोज़ डूबते हैं और वह ठगे जाते हैं।

फ़ूड सेफ्टी, हाइजीन की ज़िम्मेदारी किसकी? जवाबदेही कौन तय करेगा?

सवाल यह है कि इस तरह खाने पर हो रही ठगी की ज़िम्मेदारी कौन लेगा? फ़ूड एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म्स टाई अप हुए रेस्तराँ से हाइजीन और उच्च गुणवत्ता के फ़ूड डिलीवरी और सेफ़्टी को इंश्योर करने के लिए क्या मानक अपनाते हैं? क्या रेगुलर बेसिस पर रेस्तराँ के खाने की चेकिंग होती है? या फिर हमारे जैसे यात्री अपनी यात्राओं के दौरान ऐसे ही ठगे जाते रहेंगे?

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ओवर प्राइसिंग कोई नयी बात नहीं है। ट्रेन्स में आईआरसीटीसी के एजेंट्स खाने का ओवर चार्ज करते हैं। ट्रेन में निर्धारित मूल्य से अधिक पर पैंट्री का खाना यात्रियों को डिलीवर किया जाता है। इनके एजेंट्स रेट चार्ट लेकर नहीं चलते। रेट टू रेट देने पर बहस और हाथापाई भी करते हैं। प्रीमियम ट्रेन के हालात भी वही हैं जो साधारण ट्रेन्स के हैं। वन्दे भारत ट्रेन में कॉक्रोच युक्त खाने की ख़बर अभी ज़्यादा दिन पुरानी नहीं है।

भारत में फ़ूड सेफ्टी को लेकर सरकारें कितनी गंभीर?

भारत में फ़ूड सेफ्टी को लेकर हमारा रवैया बेहद ख़राब है। ट्रेन जैसे सार्वजनिक परिवहन में तो स्थिति बेहद ख़राब है। इसको लेकर सरकार की क्या तैयारियाँ हैं और उसपर कितना अमल होता है यह राम जाने। लेकिन यक़ीन मानिए आज भारत बीमारियों की जद में इन्ही कारणों से है। फ़ूड सेफ्टी को लेकर कोई किसी से सवाल पूछने वाला नहीं है। ज़िम्मेदारी और जवाबदेही क्या होती है यह भारतीय सरकारी ऑफिशियल्स नहीं जानते। और शायद यही वजह है कि अनैतिक रूप से पैसा कमाने के लिए फ़ूड वेंडर्स कुछ भी खिला रहे हैं।

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Sudeept Mani Tripathi

Sudeept Mani Tripathi

About Author

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से हिंदी पत्रकारिता में परास्नातक। द लोकतंत्र मीडिया फाउंडेशन के फाउंडर । राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर लिखता हूं। घूमने का शौक है।

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